साइबर अपराध: मानव ने अपने मस्तिष्क के बदौलत तीव्र गति से प्रगति किया है। उसकी प्रगति विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में अभुतपूर्ण है। तकनीकी प्रगति ने जहां एक ओर इंटरनेट द्वारा समूचे विश्व की सीमाओं को लाँघ कर ज्ञान, सूचना और संपर्क की क्रांति को सभी व्यक्तियों तक उपलब्ध कराया है, वहीं इस प्रगति की दौड़ में मनुष्य ने विकृत मानसिकता और लालच के चलते कई अनैतिक और विधि विरुद्ध क्रियाकलाप भी संपादित किए, इनमें से एक प्रमुख है – साइबर अपराध।
साइबर अपराध कंप्यूटर और इंटरनेट आधारित विधि विरुद्ध कृत्य
साइबर अपराध कंप्यूटर और इंटरनेट आधारित अनैतिक, विधि विरुद्ध कृत्य है, जिसमें अपराधी की कोई भौतिक पहचान नही होती है, वह दुनिया में कहीं से भी बैठकर तकनीकी के माध्यम से ऑनलाइन गतिविधियों को अकेले ही संपादित कर सकता है। तकनीकी के प्रगति के फलस्वरुप साइबर अपराध का क्षेत्र काफी व्यापक हुआ है, परंतु फिर भी कुछ प्रमुख साइबर अपराध निम्न है- हैकिंग, वायरस हमला, मनी लांड्रिंग, रैनसम वेयर, बैंक खाते से पैसा उड़ाना, ऑनलाइन ठगी, फेक रोजगार पोर्टल बनाकर पैसा ठगना, फेक आईडी बनाना, डाटा लीक करना, स्पैम, अश्लील वीडियो बनाकर इंटरनेट पर डालना और ब्लैक मेल करना, साइबर स्टॉकिंग और फिशिंग, गलत पहचान बनाकर सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपमान करना आदि प्रमुख है।
एआई ने साइबर अपराध को और बढ़ावा दिया
यदि हम हाल की घटनाओं पर गौर करें, तो कुछ वर्ष पहले वनाक्राई नामक रैनसम् वेयर का हमला जिससे अमेरिका, यूरोप तथा भारत के भी बहुत से कंप्यूटर इसकी गिरफ्त में आ गए। इसके अलावा केरल पुलिस कुछ विश्वविद्यालय की वेबसाइट भी हैक किया गया था। कुछ दिन पूर्व पर्यावरण संरक्षण विभाग की एक फेक वेबसाइट बनाकर रोजगार के नाम पर लाखों की लूट हुई। आए दिन अखबारों में बैंक खाते से पैसे गायब होने की सूचना मिलती है। अश्लील वीडियो बना कर इंटरनेट पर ब्लैक मेलिंग की आये दिन सूचना मिलती है। एआई ने साइबर अपराध को और बढ़ावा दिया है। साइबर अपराध के यदि कारणों की खोज करें तो हम पाते हैं कि भौतिक पहचान का अभाव, कहीं से भी इंटरनेट आधारित प्रचालन संभव, डिजिटल जागरूकता का अभाव, कुशल आईटी सेल की कमी, कठोर कानून का अभाव, वैश्विक एकमतता का अभाव, इंटरनेट सुरक्षा की कमी, वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अंतर्गत दुश्मन देश भी साइबर हमले करवाते हैं।
साइबर अपराध का स्वरूप व्यापक है
चूंकि साइबर अपराध का स्वरूप व्यापक है, अतः इसका प्रभाव भी बड़े स्तर पर होता है। इससे देश की संप्रभुता और व्यक्ति की निजता दोनों ही खतरे में पड़ जाती है। आर्थिक क्षति भी व्यापक स्तर पर होती है। सूचनाएं लीक होने से गोपनीयता प्रभावित होती हैं तथा सूचनाओं के गलत इस्तेमाल की भी आशंका रहती है। कभी-कभी तो साइबर अपराध के करण होने वाले ब्लैकमेलिंग से मनोवैज्ञानिक दबाव इतना बढ़ जाता है कि लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। इस संबंध में भारत में व्यक्तिगत डाटा संरक्षण कानून मौजूद है। साइबर अपराध नियंत्रण शाखा पृथक रूप से कार्य करती है तथा आनलाइन माध्यम से अपराध को सूचित करने की भी व्यवस्था है। केंद्र सरकार द्वारा Cybercrime.gov.in पोर्टल शुरू किया गया है। इसपर कोई भी व्यक्ति अपने नाम से या नाम छिपाकर शिकायत दर्ज कर सकता है। इस संबंध में हाल ही में भारत सरकार ने सेना की एक विशेष बल (आईटी बल) के गठन की सिफारिश की है।
इंटरनेट गवर्नेंस फोरम का भी महत्वपूर्ण योगदान
वैश्विक स्तर पर भी इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए अनेक प्रयास किये गए हैं। साइबर अपराध पर बुडापेस्ट कन्वेंशन अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयास है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो राष्ट्रीय कानूनों के सामंजस्य, जाँच तकनीकों में सुधार और राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ाकर इंटरनेट एवं कंप्यूटर संबंधी अपराध को संबोधित करने का प्रयास करती है। यह 1 जुलाई 2004 को लागू हुआ। भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। इंटरनेट गवर्नेंस फोरम का भी महत्वपूर्ण योगदान है। यह इंटरनेट गवर्नेंस विमर्श पर सभी हितधारकों, यानी सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को एक साथ लाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी वातावरण में सुरक्षा के मुद्दों पर दो प्रक्रियाओं की स्थापना की है।
रूस द्वारा संकल्प के माध्यम से ओपन-एंडेड वर्किंग ग्रुप भी है तथा संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा संकल्प के माध्यम से सरकारी विशेषज्ञ समूह है। भारत में आयोजित जी-20 देशों के डिजिटल आर्थिक कार्य समूह की बैठक में साइबर अपराध की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई गई। इस पर रोक के लिए सभी सदस्य देशों के बीच वैश्विक स्तर पर एक नियंत्रण केंद्र बनाने पर सैद्धांतिक सहमति बनी। इसके तहत सदस्य देश एक दूसरे को साइबर व वायरस हमले की सूचना देने के साथ उससे बचाव के लिए भी सतर्क करेंगे। एक वैश्विक साइबर पुलिस की भी आवश्यकता महसूस की गई है।
साइबर अपराध की विभीषिका एवं दुष्प्रभावों की व्यापकता
साइबर अपराध की विभीषिका एवं दुष्प्रभावों की व्यापकता को देखते हुए इसके अति शीघ्र नियंत्रण के उपाय जरूरी है। सर्वप्रथम इस समस्या के प्रति वैश्विक सहमति आवश्यक है। डिजिटल सुरक्षा हेतु जरूरी है कि डिजिटल साक्षरता के साथ डिजिटल जागरूकता का भी व्यापक प्रसार किया जाए ताकि व्यक्ति अपने पासवर्ड आदि किसी से साझा ना करें तथा कहीं लिखकर ना रखें, उसे एक निश्चित समय बाद बदलते रहे। जरूरी है कि अपने कंप्यूटर को हमेशा अपडेट करता रहे तथा उनमें मजबूत एंटीवायरस सॉफ्टवेयर भी आवश्यक है। मजबूत इंटरनेट सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता है। इसके लिए एक मजबूत आईटी सेल इंटरनेट आधारित पुलिसिंग भी जरूरी है, जो सक्रिय और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र हो।
आईटी अपराध के कानूनों का और सख्ती से पालन होना जरूरी है। आईटी सेल की सक्रियता ही अपराध पर नियंत्रण कर सकती है। यह जरूरी है कि इससे जुड़े अपराधियों को सख्त सजा दी जानी चाहिए। इस हेतु वैश्विक स्तर पर भी सहयोग एवं समेकित प्रयास की जरूरत है ताकि किसी भी देश से ऐसे अपराध संचालित ना हो सके। पुलिस टीम में बेहतरीन आईटी पारंगत व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए तथा पुलिस के अपने तकनीकी उपकरणों का भी अद्यतन (अपडेट) रहना जरूरी है।
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यदि हम उपरोक्त उपायों पर गौर करें तो निश्चित ही साइबर अपराध को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे हम सभी अपनी निजता, स्वतंत्रता, संप्रभुता को बनाए हुए निरंतर प्रगति कर सकेंगे।

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