Sunday, June 8, 2025

Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2023: इस श्राप से भगवान विष्णु बन गए थे पत्थर, जानें पौराणिक कथा…

Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2023: पंचांग के अनुसार, वर्ष भर में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक देव उठनी एकादशी भी है। दिवाली के 11 दिन बाद पड़ने वाली कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मान्यता दी जाती है।

Dev Uthani Ekadashi Katha:  एकादशी तिथि का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस साल 2023 में देव उठनी एकादशी 23 नवंबर को गुरुवार के दिन है। मान्यता है कि देव उठनी एकादशी की पूजा बिना व्रत कथा के संपन्न नहीं की जाती है। आज हम आपको देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2023) की व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं कि कैसे भगवान विष्णु पत्थर के रूप में बदल गए। 

यह भी पढ़ें-Kundli GPT in Hindi: क्या है कुंडली GPT कैसे काम करता है ?

पौराणिक कथा के अनुसार, वृंदा नामक एक स्त्री थीं जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं और साथ ही आयुर्वेद की ज्ञाता थीं। उनका विवाह भगवान शिव के अंश जालंधर से हुआ था। जालंधर न सिर्फ शक्तिशाली था बल्कि कई आसुरी और मायावी दिव्य शक्तियों का स्वामी भी था। 

dev uthani ekadashi ki vrat katha
Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2023

जालंधर ने तीनो लोकों पर आतंक मचाया हुआ था। चूंकि जालंधर भगवान शिव का अंश था इसलिए किसी के लिए भी उसको मार पाना संभव न था। शिवांश होने के कारण मात्र भगवन सिव ही उसका वध कर सकते थे लेकिन यह भी तब संभव था तब माता पार्वती उनके साथ हों। 

जालंधर ने माता पार्वती को दिव्य शक्तियों के माध्यम से एक आसुरी गुफा में छिपा दिया था। हालांकि यह भगवान शिव की ही लीला थी जिससे जालंधर के वध की घड़ी समीप आ सके और उसके पापों का घड़ा भरे। वरना किसमें इतनी शक्ति कि आदि शक्ति को कैद कर सके। 

बहराल, इस घटना के बाद भगवान शिव ने जालंधर का वध करने का निर्णय लिया और जालंधर से युद्ध करने पहुंच गए लेकिन महादेव चाहकर भी जालंधर का वध नहीं कर पा रहे थे क्योंकि जालंधर की पत्नी वृंदा ने सतीत्व को जालंधर की ढाल बनाया हुआ था।

dev uthani ekadashi ki katha
Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2023

वृंदा भगवान विष्णु के अखंड पूजा-पाठ में लीन थी जिसके कारण उस पूजा से उत्पन्न शक्तियां जालंधर को दिव्यता प्रदान कर रही थीं। तब भगवान विष्णु ने महादेव की सहायता के लिए वृंदा का सतीत्व भंग किया। अपने आराध्य द्वारा ऐसा होता देख वृंदा दुखी हुई।

साथ ही, वृंदा ने क्रोध में भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया और खुद आत्मदाह कर लिया। तब भगवान विष्णु ने वृंदा को यह वरदान दिया कि उनका यह पत्थर रूप शालिग्राम के रूप में जाना जाएगा और वृंदा तुलसी के रूप में अवतरित होंगी।

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह होगा और उसी दिन देव उठनी एकादशी मनाई जाएगी। तभी से देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालग्राम भगवान के विवाह की परंपरा चली आ रही है। 

चचा! इसे भी पढ़ लो...

इन वाली खबरों ने रुक्का तार रखा...